Thursday, October 11, 2018

मन तो मेरा भी करता है मॉर्निग वॉक पर जाऊं मैं,
सुबह सवेरे मालिश करके थोड़ी दंड लगाऊं मैं,
बूढ़ी मॉ के पास में बैठूं और पॉव दबाऊँ मैं
लेकिन मैं इतना भी नही कर पाता,
क्योंकि मैं वो मानव हूँ जो मानव नही समझा जाता *************** *************** **********
हमने बर्थ डे की पिघली हुई मोमबत्तियॉ देखी है,
हमने पापा की राह तकती सूनी अंखियाँ देखी हैं,
हमने पिचके हुए रंगीन गुब्बारे देखे हैं,
पर बच्चे के हाथ से मैं केक नही खा पाता,
क्योंकि मैं वो मानव हूँ जो मानव नही समझा जाता *************** *************** **********
निज घर करके अंधेरा सबके दिये जलवाये हैं,
कहीं सजाया भोग कहीं गोवर्धन पुजवायें हैं,
और भाई बहिन को यमुना स्नान करवाये हैं,
पर तिलक बहिन का मेरे माथे तक नही आ पाता,
क्योंकि मैं वो मानव हूँ जो मानव नहीं समझा जाता
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हमने ईद दिवाली दशहरा खूब मनाये हैं,
रोज निकाले जुलूस और गुलाल रंग बरसाए हैं,
ईस्टर,किर्समस,व ैलेंटाइन और फ्राइडे मनाये हैं,
पर मैं कोई होलीडे संडे नही मना पाता,
क्योंकि मैं वो मानव हूँ जो मानव नहीं समझा जाता
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जाम आपदा फायरिंग या विस्फोट पर आना है,
सब भागें दूर- दूर पर हमें उधर ही जाना है,
रोज रात में जागकर आप सबको सुलाना है,
पर मैं दिन में कभी दो घंटे नहीं सो पाता,
क्योंकि मैं वो मानव हूँ जो मानव नहीं समझा जाता
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जिन्हें अपनों ने ठुकराया वो सैकड़ो अपनाये हैं,
जिन्हें देखकर अपने भागे हमने वो भी दफनाये हैं,
कई कटे-फटे, जले- गले, अस्पताल पहुंचाए हैं,
कई चेहरों को देखकर मैं खाना नहीं खा पाता,
क्योंकि मैं भी मानव हूँ पर मानव नहीं समझा जाता
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घनी रात सुनसान राहों पर जब कोई जाता है,
हर पेड़ पौधा भी वहॉ चोर नजर आता है,
कड़कड़ाती ठंड में जब रास्ता भी सिकुड़ जाता है,
लेकिन पुलिया पर बैठा सिपाही फिर भी नही घबराता,
क्योंकि यह वो मानव है जो मानव नही समझा जाता
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चाह नहीं कोई सम्मान दिलवाया जाय,
चाह नही हमें सिर आँखों पर बैठाया जाय,
चाहत है बस हफ्ते में एक छुट्टी मिल जाय,
 कोई प्यारी नजर हमारी तरफ उठ जाय...
हम भी मानव हैं बस हमें मानव समझा जाय।




Originally written by me Mahesh Chand Gautam
Dated :14-2-2014